नहीं हूँ मैं खुश इन बंदिशों में,
नहीं मिलता सुकून मुझे इस तरह जी के,
सब कुछ मानो ज़िंदगी मे उसी जगह थम सा गया हैं,
और ये मेरे साथ पहली बार नही हुआ हैं,
जो भी था मेरे पास, मेरी हँसी, मेरी खुशी, मेरे दोस्त और मेरी आज़ादी सब कहीं गुम हो गया हैं,
क्या किसी को इनसब का पता पता हैं?
अपनो का साथ तो हैं,मगर अपने साथ नही हैं,
हाँ ये सिर्फ मेरे जज़्बात नहीं हैं,
खुद से नफ़रत सी होने लगी हैं मुझे,
कैसे बताऊ, कैसे समझाऊँ मैं ये सब तुझे,
मैं अब मैं नही रही हूँ,
जिस बात की तकलीफ़ मुझे सबसे ज्यादा हो रही हैं,
तुझसे दूर जाने का गम नहीं हैं,
मगर अपनो को खुद से दूर जाते देखना जरूर मुझे ये रिश्ता खत्म करने को मजबूर कर रहा हैं,
नहीं जानती मैं सही हूँ कि गलत,
नही पता मैं कब तक ये सब होता देख पाऊंगी,
मेरा नाम ना बदनाम हो, मेरे रिश्ते ना ख़राब हो इस वज़ह से कब तक सब कुछ सह पाउंगी मैं,
शायद बहुत जल्दी कर दी मैंने, या बहुत देर कर दी हैं मैंने,
नही पता है कुछ भी मुझे, कुछ भी नही पता हैं मुझे।
Shivika mishra