Sunday, July 28, 2019

औरत की ज़िन्दगी

जब मैं कोख में थी तब लाखों सपने बुन रहे थे बाहर इस दुनिया में ये मेरे लोग, जब इस दुनिया मे रखा मैंने कदम तो कुछ के सपने टूट चुके थे, कुछ अपने रूठ चुके थे, साथ कुछ का छूट गया था, क्योंकि उनके घर जन्मी थी एक लडक़ी। कुछ का कहना था अनाथालय में छोड़ आओ इसे, कुछ कहते थे कूड़े में फेंक दो इसे तो कुछ कहते थे दफना दो इसे और इस कहानी का अंत यही कर दो। जैसे कोई पाप हो गया हो, जैसे उनसे कुछ छिन गया हो, जैसे मैने उनकी खुशियों पे पानी फेर दिया हो कुछ ऐसा था स्वभाव उन सब का मेरे प्रति। मगर किसी का सपना पूरा हुआ था, किसी की दुआओं ने असर जो करा था, वो बहुत खुश थे मेरे इस दुनिया मे आ जाने से। हाँ.... वो ही तो मेरे अपने, मेरे मम्मी पापा थे। घर लाकर मुझको उन्होंने सबको तो था खो दिया मगर पाकर मुझे ऐसा था लगता जैसे उन्होंने खुशियों का संसार था पा लिया। फिर उन्होंने मुझे अपनी हर खुशी बना लिया। मेरे लिये उन्होंने काफी कुछ हैं सहा, कभी अपनो के ताने, कभी दूसरो से पैसो के लिए बहाने,तो कभी खाने में कुछ भी ना होना, खुद का भूखा सोना मगर कभी मुझको किसी भी चीज़ की कमी नहीं महसूस होने दी उन्होंने। मुझको काफी नाज़ों से पाला , हर मुश्किल में उन्होंने ही मुझे था संभाला। मेरी हर खुशी में, मेरे हर दुख में वो ही मेरे साथ थे, वो मेरे लिए बहुत हसीन अहसास थे। फिर मैं सयानी हो गयी, पापा बोले अब तुम परायी हो जाओगी, और हमसे बहुत दूर चली जाओगी । वो वक़्त तब मानो और तेज़ी से बढ़ रहा था , सब कुछ मेरा मुझसे वो छीन रहा था, मेरे माँ बाप, मेरा संसार , मेरा घर दीवार, मेरा प्यार और सबसे जरूरी मेरा उपनाम। मैं हो गयी थी अब परायी, मम्मी पापा को मैं थी छोड़ आयी, सब कुछ यहाँ नया था, नई शुरुवात थी वो मेरी ज़िंदगी की... जहाँ ना मेरा कोई अपना था ना ही जहा कोई मेरा सपना था। सब घूर घूर कर देख रहे थे, रीति रिवाज़ तो मानों मेरे सर पर चढ़े थे, हर जगह खुशी का माहौल था, मेरी दुख की किसी को कुछ नही पड़ी थी यहा। मैं गुमसुम सी एक कोने में बैठी सब देख रही थी, कैसे मेरी ज़िंदगी बदली ये सोच रही थी। सब खुशी से झूम रहे थे कुछ कह रहे थे तो कुछ नाच रहे थे, मुझको देख सब गपशप कर रहे थे । ऐसा लग रहा था मुझे जैसे मेरी ज़िंदगी में कोई तूफान आया हो। फिर सामने से एक अजनबी मेरे पास आ बैठा था, उसको ही तो मेरे मम्मी पापा ने पूजा था... हाँ वो ही मेरा जीवन साथी था। रात हुई.. मैं सहम सी गयी... वो आया और सो गया और मैं पूरी रात रोती रही। अब मेरा उपनाम अलग था, मेरी पहचान अलग थी। मेरा अभिमान मेरा स्वाभिमान सब मझसे छीन लिया गया था। एक गले का फंदा मेरे गले मे था, माँग में कुछ लाल रंग का पाउडर था , हाथों में कुछ हथकड़ियों से था। अब मेरे सामने मर्यादाएं और जिम्मेदारियां थी और मैंने कोई शर्म लिहाज़ का गहना भी अब पहना था। घर- गृहस्ती पर अब मेरा हक होना था, सब कुछ नया था कुछ नही पुराना था, न कोई साथी था और ना ही ये कोई फसाना था। नई चुनौतियां दरवाज़े पे दस्तक दे रही थी, मैं ये सब सोच मन ही मन रो रही थी। मैं कहना चाह रही थी कि मुझसे ये नही हो पाएगा मगर कोई नही था सुनने वाला, समझाने वाला फिर पापा मम्मी की बात याद आयी "चुनौतियों से जो हार गई, तुम खुद से फिर हार गई" बस फिर मैं उठ खड़ी हुई, और एक बार फिर एक ज़िन्दगी में अपना पहला कदम रख चल पड़ी, रास्ते मे कई रुकावट मिली, कई जिम्मेदारिया, कई मजबूरियां मगर हमने हार नही मानी क्योंकि ये ही मेरी ज़िंदगी थी। फिर एक नया पड़ाव आया उसने सब कुछ फिर से बदल दिया.... अब मैं भी माँ बन गयी थी, खुशियों की एक लहर मेरे आँगन भी आ गयी थी, सब खुश थे उसके आ जाने से क्योंकि लड़का था न वो। अब उसके पापा का उपनाम उसका था, उसके आ जाने से ज़िन्दगी में कई बदलाव आए और खुशी आयी। ज़िन्दगी, परिस्तिथियां, मजबूरियां, जिम्मेदारिया सब फिर बदल गए थे। इस बार खुशियां दरवाज़े पे दस्तक दे रही थी उठ चली मैं उसकी ओर। यहीं होती हैं हर एक औरत की कहानी, कुछ नया नही है इसमें , न ही कुछ होगा, लड़का लड़की में भेदभाव दुसरो की तो छोड़ो अभी भी कही न कही तुम्हारे दिल में दबा होगा। हर वक़्त एक नया मोड़, एक नई चुनौती, एक नया सफर तय करना फिर भी कमज़ोर समझते एक लड़की को, एक स्त्री को, एक महिला को। शायद इसी में तुमको सन्तुष्टि मिले तो वो ये भी सुन लेती हैं वो की कुछ नही सह जाती हैं। अपना सब तुम्हारे लिये छोड़ आती हैं फिर भी उसको तुम अपने दबा के रखते, तरसा के रखते, डरा के रखते हों, वो चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं। तुमसे भी मजबूत है वो "मगर क्या करे लड़की जात है ना" इस बात पर मजबूर है वो।