Monday, August 13, 2018

Dil ki bat

आज दिल में कोई बात यु लगी,
जैसे मन में कई उमंगें जगी,
कही इसको प्यार मिला,
कही इसको नफरत मिली,
मगर ये क्या था ये मैं समझ न सकी,
ये इश्क़ था, मोहब्बत थी, या रूह का कोई बंधन था,
जिसको में समझ न पायी बस उसमे उलझती बढ़ी चली,
दिल भी हैरान था,
मन भी परेशां था,
ये क्या हो रहा था मानो खुदा खुद भी इससे अंजान था,
कही तो जा रहे थे हम मगर बिखरे जा रहे थे हम,
रिश्ते छूट रहे थे, अपने रूठ रहे थे,
कुछ हँस रहे थे, कुछ गा रहे थे,
और हम कही गम में डूबे जा रहे थे,
किताबो के पन्नो में कुछ अश्क़ बह रहे थे,
कुछ अपने कुछ उनके शब्द कह रहे थे,
हम डूब रहे थे उन गहराइयों में जहाँ से निकलना था मुश्किल,
मगर हमे भी करनी थी अपनी मंज़िल हासिल,
तो भर दिया उन गहराइयों को अपनी बुराइयों से,
निकल आयी मैं उन वीरान पहाड़ियों से,
जीत गयी थी मैं अपनी ज़िन्दगी की ज़िद से,
खुश थी मैं इस दुनिया में वापस आके|